Monday, 24 October 2016

हमें न बांधो प्राचीरों में

हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजर बद्ध न गा पाएंगे।
कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे।

हम बहता जल पीने वाले मर जाएंगे भूखे-प्यासे।
कहीं भली है कटुक निबौरी कनक कटोरी की मैदा से।

स्वर्ण श्रंखला के बंधन में अपनी गति उड़ान सब भूले।
बस सपनों में देख रहे हैं तरु की फुनगी , पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते नील गगन की सीमा पाने।
लाल किरण सी चोंच खोल चुगते तारक-अनार के दाने।

होती सीमाहीन क्षितिज से इन पंखों की होडा-होड़ी।
या तो क्षितिज मिलन बन जाता, या तनती साँसों की डोरी।

नीड न दो, चाहे टहनी का आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो।
लेकिन पंख दिए हैं तो आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।

- शिवमंगलसिंघ सुमन